Uttarakhand : बस अब विलुप्ति की कगार पर है यह पहाड़ की चक्की

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घट /घराट का महत्व

पहाड़ की चक्की,शुद्धता और आपसी भाईचारे की मिशाल कायम करने वाली ये चक्की शायद ही अब कंही देखने को मिलती होगी गुजरे जमाने में जीवन जीने का ये मुख्य आधार भी होती थी शायद पहाड़ की मानव सभ्यता के विकास की ये तकनीक सबसे प्राचीन भी है पहाड़ की जीवन शैली में इसे आम भाषा में घराट या घट्ट कहा जाता है और हिंदी में पंचक्की यानी कि पानी से चलने वाली चक्की। ये पूर्ण रूप से हमारे चारों ओर के पर्यावरण के अनुकूल होते थे इसका निर्माण हमारे बुजुर्गो ने अपनी सुविधा के अनुसार किया है जिस जगह पानी की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता रही वहीं इसका निर्माण किया खासकर नदी या सदाबहार गाढ़ गदेरे में इसका निर्माण हुआ है एक समय वो भी था जब हर गांव का अपना एक घराट होता था चाहे वो किसी एक व्यक्तिगत परिवार का रहा होगा पर पूरे गांव के लोग उसी घराट में अपना गेहूं, जौ,मक्का,झंगोरा या पीसने का जो भी होता था सब घराट में पिसा जाता था।


कैसे काम करती है पहाड़ी चक्की

घराट की कार्य प्रणाली पूर्ण रूप से पानी के बहाव पर निर्भर करती है जैसा पानी का वेग/ प्रवाह होगा घराट वैसा ही काम करेगा पानी की एक निश्चित मात्रा घराट चलाने में उपयोग में लाई जाती है घराट चलाने के लिए काम से कम 300-400 मीटर दूर से गूल का निर्माण किया जाता है और ये गूल पीछे से चौड़ी और आगे से संकरी होती है जिससे पानी में वेग वो उत्पन्न हो इस गूल द्वारा पानी को पनाल (लड़की से निर्मित सीढ़ीनुमा) की ओर प्रवाहित किया जाता है इस कारण पानी का प्रवाह तेज हो जाता है इस प्रवाह के नीचे पंखेदार चक्र (घिरनी) भेरण लगी होती है उसके ऊपर चक्की पर दो पाट रखे जाते है ये पत्थर के बने होते है पंखे के चक्र के बीच का हिस्सा व ऊपर उठा नुकीला भाग ऊपरी चक्के के खांचे में निहित लोहे की खपच्ची में फंसाया जाता है पानी के वेग से ज्यों ही भेरण घूमने लगती है चक्की का उपरी हिस्सा घूमने लगता है पिसाई के पाट के ऊपर लकड़ी का एक शंकु के आकार का एक पात्र बना होता है ऊपर से चौड़ा और नीचे से संकरा होता है संकरे हिस्से में लकड़ी की नाली लगाई जाती है जिससे कि अनाज लकड़ी के नाले से होकर चक्की वाले पाट के छिद्र में ही गिरे व अनाज की पिसाई सही ढंग से हो सके।


अंतिम पड़ाव

आधुनिक तकनीक ने नई नई चक्कियों का निर्माण तो कर दिया है साथ है सुविधाजनक चक्कियों का भी जिससे ये प्राचीन तकनीक पीछे हो गई है पर घराट में पिसे आटे और बिजली से चलने वाली चक्कियों के पिसे आटे के स्वाद और शुद्धता और गुणवत्ता में काफी अंतर होता है और ये अनुभव सिर्फ वो लोग कर सकते है जिसने उस स्वाद को चखा है।
पुराने समय में लोगो के पास पैसा कम था वस्तु विनिमय का प्रचलन भी था घराट में लोग पिसाई के रूप में पैसा नहीं आटा देते थे जिससे घराट चलाने वाले व्यक्ति के परिवार का भरण पोषण होता था और पीसने वाले परिवार का भी,यानी कि आपसी भाई चारे का भाव भी था।आज हालात ये है आपदा से कई नदियों के पानी का रुख बदल जाने से कई गांव के घराट आपदा का शिकार बन चुके है और कई गाढ़ गदरे सुख चुके है लोगो को अपनी सुविधा के अनुसार बिजली वाली चक्कियों में आटा पीसना आसान लगता है उनको लगता है कि उनका समय बचेगा पर कहीं न कहीं वो घराट में पिसे आटे के स्वाद से बंचित रह गए है।

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