Home गों गुठियार क्या आप भी जानते हैं पहाड़ी करेले के ये ओषधीय गुण

क्या आप भी जानते हैं पहाड़ी करेले के ये ओषधीय गुण

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जब भी बात पौष्टिक आहारों की आती है तो उसमें सबसे अधिक जिक्र आर्गेनिक उत्पादन का होता है ओर मौजूदा वक़्त में हमने देखा है की अब लोग एक बार फिर आर्गेनिक खेती की ओर रुख कर रहे हैं. ऐसे में बात अगर उत्तराखंड की करें तो यहाँ कई ऐसे प्राकृतिक उत्पादन हैं जो काफ़ी पौष्टिक हैं साथ ही साथ वह उत्तराखंड में  बड़ी मात्र में उगाये जाते हैं तो इन्हीं में से एक है मीठा करेला या पहाड़ी करेला

इस पहाड़ी करेले को इंग्लिश में सिलेंथरा पेडाटा (एल) स्चार्ड (Cyclanthera pedata (L.) Schrad) के नाम से जाना जाता है। यह समुद्रतल से लगभग 2600 मीटर तक की ऊंचाई वाले पहाड़ी इलाकों में अगस्त से नवंबर तक उगने वाली एक पहाड़ी सब्जी है। वास्तव में यह एक पतली बेल है 

जिसकी लम्बाई 12 मीटर तथा इसके पतियों की लम्बाई  24 सेंटीमीटर तक होती हैं।इसपे सब्जी की शुरुवात छोटे हरे या सफेद रंग के फूलों से होती है। इसका फल हल्का हरा, अंडाकार, घुमावदार, 15 सेमी तक लंबा, लगभग खोखला, चिकनी त्वचा के साथ या कभी-कभी नरम रीढ़ में ढका होता है इसके बीज पकने पर काले होते हैं। पहाड़ में बरसात की सब्जियों के आखिरी पायदान पर यह लोगों के पोषण के काम आता है। छोटे-छोटे कांटों वाली यह सब्जी मिनटों में तैयार हो जाती है तथा काफी पोषणों से भरी होती है.

 इसकी सब्जी धीमी आंच पर पकाई जाती है। इसके फल पोटेशियम, मैग्नीशियम और फास्फोरस के स्रोत हैं। फलों का स्वाद ककड़ी जैसा या अन्यथा बेस्वाद भी हो सकता है। यह आम प्रचलित करेले की तरह कड़वा नहीं होता। उत्तराखण्ड के अलावा भारत के अन्य हिस्सों के साथ-साथ यह दक्षिण अमेरिका में भी पाया और खाया जाता है। पेरू में इसे काइवा कहते हैं।

पहाड़ की संस्कृति की व यहां के खान-पान की बात ही अलग है। मीठा करेला, जिसे अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नाम से जाना जाता है। यह करेला कड़वा नहीं बल्कि मीठा होता है। मीठे होने के कारण इसको मीठा करेला कहते है। कुछ लोग इसे परमला कहते हैं कई जगह ये ककोड़ा के नाम से जाना जाता है। शहरों में इसे राम करेला कहा जाता है। इस सब्जी का नाम राम करेला क्यों पड़ा यह तो किसी को पता नहीं, परंतु इसे ये नाम इसके गुणों की वजह से मिला है। क्योंकि इसमें औषधीय गुण पाये जाने के कारण रामबाण या राम करेला कहा जाता है.

एक मान्यता यह भी है कि भगवान राम ने अपने वनवास के दौरान इस सब्जी का सेवन किया था तभी से इसे राम करेला कहा जाने लगा। अगर आप ठेठ पहाड़ी हैं तो इस करेले  की सब्जी आपने जरूर खाई होगी। यह पहाड़ी सब्जी गुणों की खान है। अगर हम इसके गुणों के बारे में जानना शुरू करेंगे तो अवश्य ही इस पहाड़ी सब्जी के मुरीद हो जाएंगे। एक शोध में पता चला है कि इसमें न केवल पर्याप्त मात्रा में आयरन मौजूद है, बल्कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले एंटी ऑक्सीडेंट और खून को साफ करने वाले तत्व भी हैं। यह शरीर में आयरन तत्व के अभाव या कमी में से एनीमिया, सिरदर्द या चक्कर आना, हीमोग्लोबिन बनने में परेशानी होना जैसी परेशानियां को पस्त कर देती हैं। इसके अलावा एंटीऑक्सिडेंट अक्‍सर अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य और बीमारियों को रोकने का काम करते है। कैंसर से बचाने, आंखों की रोशनी के लिए, मजबूत लिवर के लिए एंटी ऑक्सीडेंट शानदार चीज है। यह फाइबर, प्रोटीन और कॉर्बोहाइड्रेट की भी खान है। इसके पौधे पर बीमारियों का प्रकोप भी नहीं होता, यह पहाड़ों में खूब पनपता है। अब तो देहरादून व हल्द्वानी जैसे शहरों में खूब मिल जाता है। राम करेला पौष्टिकता के साथ औषधीय गुणों से भी भरपूर है। इसके फल मूत्रवर्धक हैं व दूध में उबालकर टॉन्सिलिस्ट के उपचार में भी काम आते हैं.

इसका रस उच्च रक्तचाप के अलावा खून में कोलेस्ट्राल के स्तर को भी ठीक रखता है। यह धमनी रोग, संचार समस्याओं और शुगर के इलाज में भी कारगर है। कड़वा करेला जहां डायबिटीज का दुश्मन है, वहीं मीठा करेला भी डायबिटीज की प्रभावशाली दवा है। मीठा करेला सभी तरह के चर्म रोग व जलन में भी यह उपयोगी है। इसकी पत्तियों का रस पेट के कीड़ों को मारने सहायक है। इसका स्वरस कील-मुहांसों को ठीक करने के भी काम आता है, जबकि इसकी जड़ को सुखाकर बनाया गए चूर्ण का लेप चर्म रोगों के लिए बहुत उपयोगी है।

तो अगली बार जब भी आप पहाड़ों का रुख करेंगे तो इस करेले की सब्ज़ी के स्वाद का आनंद जरूर लें.

यह पहाड़ों में  सीजन के वक़्त आसानी से भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहता है.

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धन्यावाद

लेख़क : शम्भू नौटियाल (जो की पेशे से एक शिक्षक हैं ओर वर्तमान में उत्तरकाशी में कार्यरत हैं) 

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