शमशाद का पहाड़ प्रेम
दोस्तों आज हम बात कर रहे हैं पिथौरागढ़ के एक ऐसे युवा की जिसका बचपन तो पिथौरागढ़ में बीता लेकिन मौजूदा वक्त में उनकी कर्मभूमि उत्तराखंड से बाहर है। कर्म भूमि उत्तराखंड से बाहर होने के बावजूद भी इस युवा का उत्तराखंड के प्रति प्रेम और समर्पण कभी कम नहीं हुआ। जी हां, हम बात कर रहे हैं युवा चित्रकार और गीतकार ‘शमशाद पिथौरागढी’ की, यूं तो वह पिछले 20 सालों से उत्तराखंड से बाहर हैं। लेकिन उनका पहाड़ प्रेम उनकी चित्रकारी में साफ झलकता है।
उनके चित्र दर्शाते हैं कि उनका अपनी लोककला,संस्कृति,धरोहरों, वाद्य यंत्रों से कितना नायाब रिश्ता है। वह अपने इस पहाड़ प्रेम को अपनी अलग-अलग आकृतियों पर उकेरते रहते हैं ‘शमशाद पिथौरागढी’ की शुरुआती शिक्षा पिथौरागढ़ के बिरसिबा स्कूल में हुई और उसके बाद वह नोकरी के सिलसिले में उत्तराखंड से बाहर चले गए । उनकी हुनर और मेहनत का ही नतीजा है कि वह 1995 में पहली बार कुमाऊनी छलिया नृतकों की खूबसूरत पेंटिंग बनाकर चर्चा में आए थे। उसके बाद से वह लगातार पिछले 25 सालों से उत्तराखंड के अलग-अलग वेशभूषा,संस्कृति धरोहरों,रंग्याली पिछोड़ी, पहाड़ी मकानों,आभूषणों,ग्रामीण जीवन,दैवीय डोली जैसी कई सारी मशहूर पेंटिंगों से प्रसिद्ध होने लगे।
काम को मिला समान
पिथौरागढ़ के इस युवा ने अपने इस हुनर को उत्तराखंड के कई अलग अलग मंचों पर भी प्रदर्शित किया है। जहाँ लोगों ने उनके चित्रों को खूब सराहा। जिसके लिए उन्हें कई सारे मंचों पर सम्मान से भी नवाजा गया है। लखनऊ में प्रसिद्ध उत्तरायणी कौथिग मेले में उन्हें साल 2019 में ‘हिमालयन सम्मान’ से भी सम्मनित किया गया था. जहाँ उन्होंने गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह को अपनी छलिया पेंटिंग भी भेंट की थी।
बड़े बड़े लोग हैं इनके दीवाने
‘शमशाद पिथौरागढ़ी’ के चित्रकारी की तारीफ पूर्व राष्ट्रपति स्व. ए.पी.जे अब्दुल कलाम से लेकर उत्तर प्रदेश की वर्तमान राज्यपाल आनंदीबेन पटेल,उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत,उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, सांसद रीता बहुगुणा जोशी,रमेश बाबू गोस्वामी, दर्शन फरस्वान,कल्पना चौहान,राजेंद्र चौहान,रवि चौहान जैसे कई लोग भी कर चूके हैं।
हाल ही में नोएडा में आयोजित हुए बसंत उत्सव में भी शमशाद पिथौरागढ़ी को उत्तराखंड की प्रसिद्ध लोक गायिका कल्पना चौहान के हाथों से सम्मानित किया गया था। शमशाद पिथौरागढ़ी बताते हैं कि हर साल उनके द्वारा बनाई गई पेंटिगों की प्रदर्शनी देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रदर्शित की जाती है। जिनमें अब होली के बाद लखनऊ में उत्तराखंड की संस्कृति पर आधारित एक पेंटिंग प्रदर्शनी के आयोजन में भी उनकी पेंटिंग प्रदर्शनी का आयोजन किया जाएगा।
चित्रकारी के साथ साथ गीतकारी का भी हुनर
शमशाद पिथौरागढ़ी बताते हैं कि चित्रकारी तो उनका एक गॉड गिफ्टेड हुनर है। लेकिन अपने इस हुनर के साथ-साथ वह उत्तराखंड की कुमऊँनी लोक भाषा में भी काफी अच्छी पकड़ रखते हैं और अपने पहाड़ प्रेम के लिए कुछ ना कुछ लिखते रहते हैं। अपने इसी पहाड़ प्रेम ओर लगाव को दर्शाने के लिए उन्होंने साल 2020 में एक प्रसिद्ध एक गीत ‘पनार की बाना’ लिखा था जो कि काफी सुपरहिट हुआ। इस गीत को अब तक यूट्यूब पर 10 लाख से भी ज्यादा लोग सुन चुके हैं।
वहीं उनके द्वारा लिखा गया एक और गीत ‘नो पाटे घाघरी’ भी लोगों को काफी पसंद आ रहा है। ‘शमशाद पिथौरागढ़ी’ अपने चाहने वालों ओर उत्तराखंड संगीत प्रेमियों के लिए मार्च में एक और गीत ‘धारचुला की बाना’ लेकर आ रहे हैं।
अब देखना ये होगा कि क्या शमशाद पिथौरागढ़ी अपने बाकी दो गीतों की तरह इस गीत से भी उत्तराखंड के लोगों का दिल जीतने में कामयाब हो पाते हैं?
चित्रकारी और गीतकारी के इस जादूगर को हमारी और से उज्ज्वल भविष्य की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।