दुर्लभ हो रही है हिमालयी मोनाल की प्रजाति

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आमतौर पर उच्च बर्फीली पहाड़ियों लगभग 8 हजार से 15 हजार फुट की ऊंचाई पर दिखाई देना वाला हिमालयी पक्षियों का सिरमौर मोनाल उत्तराखंड ही नहीं बल्कि संसार के अति सुन्दर पक्षियों में से एक है। यह उत्तराखण्ड व हिमाचल का राज्य पक्षी व नेपाल का राष्ट्रीय पक्षी भी है। मोनाल को डाँफे के नाम से भी जानते हैं। मोनाल को स्थानीय भाषा में ‘मन्याल” व ‘मुनाल’ भी कहा जाता है।

‘न्योआरनीयस गण वेलिफर्यिस’ उपवर्ग के ‘फंसीनिडी’ परिवार के सदस्य मोनाल का वैज्ञानिक नाम ‘लोफोफोरस इंपीजैन्स’ है। नर मोनाल पक्षी की लंबाई 38 इंच होती है। इसका रंग काला नीलिमा लिए होता है। इसके सिर पर चटक रंग की चोटी और उसमें कालापन लिए बैगनी रंग की झलक होती है। मादा मोनाल पक्षी की लंबाई 28 इंच होती है। इसके ऊपरी हिस्से के पंख गाढ़े भूरे एवं कत्थई धारियांयुक्त, सीना और दुम सफेद होती है। गले का रंग नारंगी होता है। मोनाल का भोजन फल-फूल और कीड़े-मकोडे़ होते हैं। मादा मोनाल एक बार में लगभग 6 अंडे देती है, जिन्हें लगभग चार हफ्ते सेने के बाद उसमें से बच्चे निकलते हैं।

यह पक्षी गर्मी के दिनों में पहाड़ के ऊपरी हिस्से में रहता है, किन्तु जाड़ों एवं बरसात के दिनों में पहाड़ के निचले हिस्से में आ जाता है। मोनाल पक्षी को उत्तराखंड राज्य गठन के बाद वर्ष 2000 में राज्य पक्षी का दर्जा मिला। चिंता की बात यह है कि हिमालयी रेंज में मोनाल की संख्या बढ़ने की बजाए लगातार घटती जा रही है। इसकी संख्या में कमी के पीछे जलवायु परिवर्तन और अवैध शिकार को बड़ा कारण माना जा रहा है। राज्य गठन के आठ साल बाद उत्तराखंड सरकार के वन्य जीव संरक्षण बोर्ड ने 2008 में मोनाल की गणना कराई थी। तब राज्यभर में 919 मोनाल पाए गए थे। सबसे ज्यादा केदार घाटी में 367 पक्षी देखे गए थे। जबकि इससे पहले इनकी संख्या हजारों में हुआ करती थी और सर्वत्र यह पक्षी दिखाई देता था। मोनाल की संख्या में अप्रत्याशित कमी की वजह भले ही जलवायु परिवर्तन, अवैध शिकार से लेकर मांसाहारी पक्षी तक हो लेकिन इसके लिए जागरूकता व संरक्षण की दिशा में ठोस रणनीति जरूरी है।

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