उत्तराखंड के लिए कई मायनों में खास है लोकपर्व बसंत पंचमी

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हिंदू रीति रिवाज के अनुसार माघ के महीने में बसंत पंचमी का खास महत्व है। बसंत पंचमी को हिंदू कैलेंडर में सबसे शुभ दिनों में से एक माना गया है देशभर के साथ-साथ बसंत पंचमी का त्यौहार उत्तराखंड में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है खासकर पहाड़ी इलाकों में।

पहाड़ों में बसंत पंचमी के मौके पर कई शुभ कार्यों का आयोजन होता है जिनमें देव स्नान,देवी देवताओं हवन, शादी विवाह, यज्ञ या किसी नए कार्य का शुभारंभ किया जाता है। बसंत पंचमी से ही पेड़ पौधों में नई कोंपलें आना शुरू हो जाती हैं यानी कि बसंत ऋतु की शुरुआत इसी दिन से हो जाती हैं। हिंदू ऋतु के अनुसार माना जाता है कि इस दिन से ही खेतों ओर फलों के पेड़ों में बीज अनाज के रूप में पड़ने शुरू हो जाते हैं और वह अपना आकार लेना शुरू कर देते हैं।

उत्तराखंड के मंदिरों व अन्य देव स्थानों पर पंचमी के दिन सभी देवी-देवताओं को स्नान कराया जाता है और वसंत ऋतु आगमन की खुशी में उन्हें भोग के रूप में रोट,प्रसाद,श्रीफल चढ़ाए जाते हैं। बसंत पंचमी के दिन पहाड़ों में लोग अपने खेतों से जो गेहूं की छोटी-छोटी बालियों को लाकर उसे गाय के गोबर के साथ अपने घर की मोरसंगाड़ व दहलीज पर लगाते हैं माना जाता है कि ऐसा करने से अनाज की उपज बढ़ जाती हैं और घर में सुख समृद्धि भी आती है।

फ्योंली बुरांश का है खास महत्व

बसंत पंचमी के मौके पर पहाड़ों में बुरांस के फूल और फ्योंली के फूल का काफी महत्व है। बसंत ऋतु के आगमन पर इन फूलों को काफी शुभ माना जाता है पंचमी के दिन बच्चे इन फूलों को इकट्ठा कर गांव के घर की दहलीज पर रखते हैं और उसके सुख समृद्धि की कामना करते हैं।फलस्वरुप घर के बड़े बुजुर्ग इन बच्चों को दान दक्षिणा के रूप में उनकी टोकरी में गुड,आटा चावल या कुछ रुपये इन्हें भेंट करते हैं। प्रथा के अनुसार बसंत पंचमी के बाद ही पहाड़ों में बुरांश के फूलों को इसके पेड़ से तोड़ा जाता है।

ध्यांणियों का खास पर्व

बसंत पंचमी का त्यौहार विवाहित महिलाओं के लिए एक खास पर्व होता है। इसी दिन विवाहित महिलाएं अपने मायके जाती हैं और अपने परिवार वालों से भेंट करती हैं। इस लोक पर्व के मौके पर उन्हें कोई रोक-टोक नहीं होती है।मायकेवाले भी अपनी ध्याणियों का बेसब्री से इंतजार करते हैं और उनके मायके आगमन की खुशी में कई तरह के पकवान भी बनाए जाते हैं जिनमें आरसे,गुलगुले,स्वाले, पकौडे, खीर,मिठ्ठू भात आदि पकवान शामिल हैं। एकही मायके से सभी विवाहित बहनें इस दिन खुशी खुशी अपने मायके में इकठा होती हैं। और एक दूसरे से भेंट करती हैं।

पशु पक्षी भी होते हैं सराबोर

इंसानों के साथ-साथ पक्षी भी बसंत पंचमी से बसंत ऋतु में सराबोर हो जाते हैं। माना जाता है कि इसी दिन से पक्षी अपने घोसले बनाने की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं।

मेलों का आयोजन

उत्तराखंड के कुमाऊं ओर गढ़वाल क्षेत्र में बसंत पंचमी के दिन कई जगहों पर पंचमी के मेले का आयोजन भी किया जाता है जिन्हें काफी धूमधाम से मनाया जाता है।

मां सरस्वती की वंदना

बसंत पंचमी को विद्या की देवी मां सरस्वती का त्योहार माना जाता है इस दिन स्कूली बच्चे मां सरस्वती की पूजा आराधना करते हैं, और मां सरस्वती से अपने विद्या के भंडार को भरने की कामना करते हैं। स्कूली बच्चे मां सरस्वती को खुश करने के लिए अपनी कॉफी- किताबों को सजा धजा के उन्हें साफ सुथरा रखते हैं। ताकि मां सरस्वती उन पर प्रश्न रहे।

शादी विवाह का है खास मुहूर्त

पंचमी का दिन शादी विवाह के कार्यों के लिए काफी शुभ माना जाता है। इस दिन पहाड़ों में कई सारी शादियों का आयोजन होता है।

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