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उत्तराखंड में इस साल समय से पहले खिला बुराँश, कहीं बड़े संकट की चेतावनी तो नहीं!

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भारत के मध्य व उच्च हिमालयी क्षेत्र इस समय जलवायु परिवर्तन का खामियाजा भुगत रहे हैं। जलवायु में पिछले कुछ समय में हुए अचानक परिवर्तन से पर्यावरण के साथ-साथ पेड़ पौधों में समय पर होने वाली गतिविधियों में भी काफी बदलाव देखने को मिला है। मध्य और उच्च हिमालई क्षेत्रों में होने वाली वनस्पतिक गतिविधियों में अब नए बदलाव देखने को मिल रहे हैं।

अमूमन नवंबर या दिसंबर के महीने में हिमालई क्षेत्रों में काफी बर्फबारी हो जाती थी लेकिन इस साल अभी तक बहुत कम मात्रा में बर्फबारी देखने को मिली है। वहीं आमतौर पर मार्च से मई के बीच हिमालयी क्षेत्रों में खिलने वाला विशेष लाल बुरांश का फूल इस समय दिसंबर के महीने में ही खिला हुआ नजर आने लगा है, जो कि आने वाले समय पर जलवायु परिवर्तन के साथ साथ वन वैज्ञानिकों के लिए भी हैरान कर देने वाला है।

उत्तराखंड के हिमालयी भागों में मार्च से मई के बीच जंगल बुरांश के घने लाल फूलों से भरे रहते हैं, चारों ओर बुरांश के फूलों की लालिमा ही लालिमा देखने को मिलती है। बुरांश का उपयोग पहाड़ों में दवाई, टॉफी, जूस बनाने के लिए किया जाता है, लेकिन अभी भी उत्तराखंड में सरकार और यहां के लोग इसे अपनी कमाई का एक मुख्य स्रोत नहीं बना पाए हैं जिसकी वजह से यह मात्र एक वनस्पतिक फूल बनकर ही सीमित रह गया।

समुद्र तल से लगभग 7000 फिट की ऊंचाई पर बसे रुद्रप्रयाग के जखोली नामक क्षेत्र में इस साल दिसंबर के महीने में ही बुराँश के फूल खिलने शुरू हो गए हैं, जिसने मौसम वैज्ञानिकों के साथ-साथ शोधकर्ताओं को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हिमालयी क्षेत्रों में इतनी तेजी के साथ जलवायु परिवर्तन हो रहा है कि जो फूल अमूमन 15 से 20 डिग्री वाली गर्मी के मौसम में खिलता था वह दिसंबर के श्रद्ध महीने में ही खिलना शुरू हो गया है।

इसके पीछे कई जानकार बताते हैं कि पिछले कुछ समय में भौगोलिक दृष्टि और जलवायु परिवर्तन ने सब कुछ बदल कर रख दिया है और आने वाले समय में इसके परिणाम भी धीरे-धीरे देखने को मिलेंगे। बुरांश के अलावा उच्च हिमालई क्षेत्रों में होने वाले काफल, हिसर, घिंगारू, चैरी और अन्य वनस्पतियां के फल भी समय से पहले ही पकने शुरू हो चुके हैं जो कि तापमान में बदलाव के साथ-साथ आने वाले समय पर खतरे की घंटी का एहसास भी दिला रहे हैं। अगर समय रहते इन गतिविधियों पर सटीक शोध नहीं किया गया या जलवायु परिवर्तन को कम करने के उपाय नहीं खोजे गए तो आने वाली पीढ़ी को इसके परिणाम भी भुगतने पड़ सकते हैं।

इस साल हिमालयी क्षेत्रों में काफी कम बारिश देखने को मिली है जिसका की सीधा सीधा संकेत मौसम के परिवर्तन पर है। जिससे हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाने वाली वनस्पतियों ओर पेड़ पौधों पर खतरा मंडराने लगा है। कुछ समय पूर्व ही मसूरी के इर्दगिर्द लगभग 5 से 7 किलोमीटर का इलाका पूरा बुराँश (रोडोडेंड्रॉन) के फूलों से सजा हुआ रहता था लेकिन अब यह पूरी तरह से विलुप्त हो चुका है। लेकिन अभी भी चकराता, रुद्रप्रयाग, चमोली, चोपता,अल्मोड़ा, गोपेश्वर व तुंगनाथ के उच्च तापमान वाली जगहों पर यह बड़ी मात्रा में देखने है।

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