बाज़ार में 25 हज़ार से 30 हज़ार रुपये किलो में बिकती है ये उत्तराखंड की प्राकृतिक सब्जी

0
Morchella esculenta

मशरूम यह नाम सुनते ही सबसे पहले ही मन में ख्याल आता है स्वरोजगार का और आये भी क्यों न…. इतने काम वक़्त में लोगों ने जो स्वरोजगार मशरूम की खेती से हासिल किया वह किसी ऐतिहासिक उपलब्धि से कम नहीं है। मशरूम कई तरह की होती हैं और इनका मार्केट भी काफी बड़े लेवल का है भले इस मार्केट को पहचानने में जरूर वक़्त लगा हो लेकिन अब इस खेती ने उत्तराखंड के पहाड़ों में जो रफ़्तार हासिल की वह काबिले तारीफ है,और आज हमें लगभग 10 में हर 4 गाँवों में मशरूम की खेती के उत्पादक मिल ही जाते हैं। पहाड़ों में जो मशरूम उगाई जाती हैं उनमें गानोएडेरमा पोर्टोबेल्लो,ओएस्टर,बटन मशरूम,मिल्की मशरूम,मोरचेला या गुच्छी आदि मशरूम शामिल है जिनकी बाज़ारों में अच्छी ख़ासी माँग है।

तो आज हम आपको जिस मशरूम के बारे में बताने जा रहे हैं वह मार्केट सबसे ज़्यादा महँगी बिकती है और ख़ास बात यह है की इस मशरूम की ये प्रजाति उत्तराखंड के पहाड़ों में खूब बड़ी मात्रा में पाई जाती है।

गुच्छी मशरूम :
गुच्छी मशरूम का वानस्पतिक नाम Morchella esculenta है। यह एक कवच के प्रकार की मशरूम है जो की बर्फ पिघलने के कुछ दिन बाद ही उगनी शुरू हो जाती है।कई मान्यताओं के अनुसार इसका उत्पादन पहाड़ों पर बिजली की गड़गड़ाहट और चमक से निकलने वाली बर्फ से होता है। यह स्वाद में बेजोड़ और कई औषधियों गुणों से भरपूर होती है। हिंदी में इस मशरूम को स्पंज मशरूम कहा जाता है।
भारत और नेपाल में स्थानीय भाषा में इसे ‘गुच्छी’, छतरी, टटमोर, डुंघरू या जुमुला जैसे नामों से जाता है। गुच्छी उत्तराखंड, हिमाचल तथा कश्मीर सहित हिमालय के कई उच्च स्थानों में पाई जाती है और स्थानीय लोगो के लिए यह किसी प्राकृतिक ख़जाने से कम नहीं है। बाजारों में बहुत सी वैरायटी के मशरूम हैं, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा गुच्छी मशरूम की ही होती है। यह एक फंगस की तरह होता है जो उच्च हिमालय के क्षेत्रों में अपनेआप उग जाता है।
मशरूम दो तरह के होते हैं एक बटन मशरूम और दूसरी औषधीय महत्व वाली मशरूम,जिसमें गुच्छी जैसी मशरूम की प्रजातियां शामिल हैं। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गुच्छी मशरूम की डिमांड काफ़ी अधिक है साथ ही इसकी कीमत भी अन्य मशरूमों के मुकाबले काफ़ी अधिक होती है। गुच्छी मशरूम मधुमक्खी के छत्ते जैसी टोपी के कारण इसकी पहचान आसानी से की जा सकती है साथ ही यह कई विटामिनों से भरी होती है जिनमें बी कॉम्प्लेक्स विटामिन, विटामिन डी और कुछ जरूरी एमीनो एसिड पाए जाते हैं. गुच्छी मशरूम के लगातार सेवन से दिल का दौरा पड़ने की संभावनाएं भी बहुत कम हो जाती हैं आज इस मशरूम की मांग सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि यूरोप, अमेरिका, फ्रांस, इटली और स्विट्जरलैंड जैसे देशों में भी है।

सेन्ट्रल एवं वेस्टर्न हिमालयी क्षेत्र के इलाकों में यहाँ के स्थानीय लोग इस मशरूम का इस्तेमाल कई वर्षों से स्वास्थ्यवर्धक आहार के रूप करते आये हैं। लैटिन भाषा में इसे मोर्सेला एस्कुलेन्टा या मोरेल मशरूम के नाम से जाना जाता है। उत्तराखंड ,हिमांचल प्रदेश और नेपाल के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में अपने आप उगने वाली यह मशरूम अब काफ़ी कम मात्रा में मिलती है और इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह है लगातार होता जंगलों का कटान और प्राकृतिक मौसम में होता बदलाव।
चीन में इस मशरूम का इस्तेमाल सदियों से शारीरिक रोगों/क्षय रोगों को ठीक करने के लिए किया जा रहा है। गुच्छी मशरूम में 32.7 प्रतिशत प्रोटीन, 2 प्रतिशत फैट, 17.6 प्रतिशत फाइबर, 38 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेटस् पाया जाता है, इसीलिए यह शरीर के लिए काफी स्वास्थ्यवर्धक मन जाता है। गुच्छी मशरूम से प्राप्त एक्सट्रैक्ट की तुलना डायक्लोफीनेक नामक आधुनिक सूजनरोधी दवा से की गई है। इसे भी सूजनरोधी प्रभावों से युक्त पाया गया है। इसके प्रायोगिक परिणाम ट्यूमर को बनने से रोकने और कीमोथेरेपी के रूप में प्रभावी हो सकते हैं। गठिया जैसी स्थितियों होने वाले सूजन को कम करने के लिए मोरेल मशरूम एक औषधीय रूप में काम करती है।कई गुणों से भरपूर यह गुच्छी मशरूम आज बाजार में कम से कम 25000 से 30000 रुपये प्रति किलो में बिकती है।

इस दुर्लभ सब्जी को पहाड़ों में साधु-संत भी ढूंढकर इकट्ठा करते हैं और ठंड के मौसम में इसका उपयोग करते हैं। प्राकृतिक रूप से जंगलों में उगने वाली गुच्छी फरवरी के अंत से लेकर अप्रैल के बीच में होती है। इसकी खोज के लिए स्थानीय निवासी अप्रैल के अंत से ही उच्च हिमालय वाले जगहों पर अपना डेरा जमा लेते हैं ताकि जैसे ही इन इलाकों से बर्फ पिघलने शुरू हो वैसे ही वे इसे अधिक से अधिक ख़ोज पायें। कई स्थानीय लोगों के लिए यह एक सीजनेबल बिज़नेस है जिसके लिए वह खूब मेहनत करते हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियां और होटल मशरूम की इस प्रजाति को हाथोहाथ खरीद लेते हैं। यही वजह है की स्थानीय लोग जंगलों में ही डेरा डालकर गुच्छी इकट्ठा करते हैं। और इसे कुछ सस्ते दामों में भी बेच देते हैं लेकिन बाजार में इसकी कीमत 25 से 30 हजार रुपए प्रति किलो है। वहीं इसकी भारी डिमांड को देखते हुए अब चीन इसकी खेती करने लगा है इसी तथ्य को नज़र में रखते हुए यह जरूर कहा जा सकता है कि जब चीन इसकी खेती कर सकता है तो उत्तराखंड में क्यों न इसकी खेती की जाये और यहाँ तो यह अपने आप भी उग जाती है बस देर है तो इस विषय में शोध की।

संक्षिप्त जानकारी:

  • गुच्छी औषधीय गुणों से भरपूर होती है।
  • इसका वैज्ञानिक नाम ‘मार्कुला एसक्यूलेंटा’ है।
  • यह स्पंज मशरूम के नाम से देश भर में मशहूर है।
  • गुच्छी एक कवक है जिसके फूलों या बीजकोश के गुच्छों की तरकारी बनती है।
  • यह स्वाद में बेजोड़ और कई औषधियों गुणों से भरपूर है।
  • मधुमक्खी के छत्ते जैसी टोपी के कारण आसानी से पहचाना जा सकती है।
  • इसमें 32.7% प्रोटीन 2% फैट 17.6% फाइबर तथा 38% कार्बोहाइड्रेट होता है।
  • गुच्छी के सेवन से कई घातक बीमारियां दूर होती है।
  • इसकी सब्जी काफ़ी स्वादिष्ठ होती है।
  • इसका प्रयोग कई प्रकार की दवा बनाने में किया जाता है।
  • ऐसा माना जाता है कि मोरेल मशरूम प्रोस्टेट व स्तन कैंसर की संभावना को कम कर सकता है।
  • चीन में इस मशरूम का इस्तेमाल सदियों से शारीरिक रोगों/क्षय रोगों को ठीक करने के लिए किया जा रहा है।
  • यह सबसे महंगी सब्जी है इसका दाम ₹25000 से 30000 रुपये प्रति किग्रा से भी अधिक है
morels
  • गुच्छी के फायदे:
  • हृदय रोग में फायदा।
  • विटामिन बी सी डी व के की प्रचुर मात्रा।
  • प्रोस्टेट स्तन कैंसर की आशंका को कम करना।
  • ट्यूमर बनने से रोकना।
  • कीमोथेरेपी से आने वाली कमजोरी दूर करने में सहायक।
  • सूजन दूर करने में लाभदायक।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here